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Tuesday, July 11, 2023

Indian Maps Climate Change Status Regions Wise

Geography Optional Subject Climate Of India Zone Wise on Maps UPSC CSE PRE MAINS


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Friday, June 16, 2023

Today Task: UPSC PYQ RPE 2022 IF You Give Answer Of  Question then You can win the gift Reward Point Coming Soon.


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Thursday, November 18, 2021

CURRENT AFFAIRS FOR UPSC, BPSC, SSC, OTHER EXAM PREPARE 2021-2022
                                                          CA current affairs 09 November

सामाजिक न्याय

मानसिक स्वास्थ्य संबंधित मुद्दे

     Star marking (1-5) indicates the importance of topic for CSE
  • 09 Nov 2021
  •  
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस, किरण हेल्पलाइन

मेन्स के लिये:

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ, संबंधित चुनौतियाँ और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति न्यायपालिका की संवेदनशीलता बनाए रखने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को ‘वन-साइज़-फिट-फॉर-ऑल’ के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिये।

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति विभिन्न तरह के खतरों का सामना करता है, जिसमें शारीरिक और भावनात्मक (प्यार, दुख व खुशी) दोनों शामिल हैं, जो कि मानव मन एवं भावनाओं की बहुआयामी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं।
  • विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस प्रतिवर्ष 10 अक्तूबर को मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • मानसिक स्वास्थ्य:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, मानसिक स्वास्थ्य का आशय ऐसी स्थिति से है, जिसमें एक व्यक्ति अपनी क्षमताओं को एहसास करता है, जीवन में सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, उत्पादक तरीके से कार्य कर सकता है और अपने समुदाय में योगदान देने में सक्षम होता है।
    • शारीरिक स्वास्थ्य की तरह मानसिक स्वास्थ्य भी जीवन के प्रत्येक चरण अर्थात् बचपन और किशोरावस्था से वयस्कता के दौरान महत्त्वपूर्ण होता है।

mental-illness

  • चुनौतियाँ:
    • उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य भार: भारत के नवीनतम राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार, पूरे देश में अनुमानत: 150 मिलियन लोगों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की आवश्यकता है।
    • संसाधनों का अभाव: भारत में प्रति 100,000 जनसंख्या पर मानसिक स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या का अनुपात काफी कम है जिनमें मनोचिकित्सक (0.3), नर्स (0.12), मनोवैज्ञानिक (0.07) और सामाजिक कार्यकर्ता (0.07) शामिल हैं।
      • स्वास्थ्य सेवा पर जीडीपी का 1 प्रतिशत से भी कम वित्तीय संसाधन आवंटित किया जाता है जिसके चलते मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंँच में सार्वजनिक बाधा उत्पन्न हई है।
    • अन्य चुनौतियाँ: मानसिक बीमारी के लक्षणों के प्रति जागरूकता का अभाव, इसे एक सामाजिक कलंक के रूप में देखना और विशेष रूप से बूढ़े एवं निराश्रित लोगों में मानसिक रोग के लक्षणों की अधिकता, रोगी के इलाज हेतु परिवार के सदस्यों में इच्छा शक्ति का अभाव इत्यादि के कारण सामाजिक अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
      • इसके परिणामस्वरूप उपचार में एक बड़ा अंतर देखा गया है। उपचार में यह अंतर किसी व्यक्ति की वर्तमान मानसिक बीमारी को और अधिक खराब स्थिति में पहुँचा देता है।
    • पोस्ट-ट्रीटमेंट गैप: मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों के उपचार के बाद उनके उचित पुनर्वास की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में मौजूद नहीं है।
    • गंभीरता में वृद्धि: आर्थिक मंदी के दौरान मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ जाती हैं, इसलिये आर्थिक संकट के समय विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
  • सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
    • संवैधानिक प्रावधान: सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत स्वास्थ्य सेवा को मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया है।
    • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP): मानसिक विकारों के भारी बोझ और मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग्य पेशेवरों की कमी को दूर करने के लिये सरकार वर्ष 1982 से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) को लागू कर रही है।
      • वर्ष 2003 में दो योजनाओं को शामिल करने हेतु इस कार्यक्रम को सरकार द्वारा पुनः रणनीतिक रूप से तैयार किया गया, जिसमें राजकीय मानसिक अस्पतालों का आधुनिकीकरण और मेडिकल कॉलेजों/सामान्य अस्पतालों की मानसिक विकारों से संबंधित इकाइयों का उन्नयन करना शामिल था।
    • मानसिक स्वास्थ्यकर अधिनियम, 2017: यह अधिनयम प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति को सरकार द्वारा संचालित या वित्तपोषित मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं और उपचार तक पहुँच की गारंटी देता है।
      • अधिनयम ने आईपीसी की धारा 309 (Section 309 IPC) के उपयोग को काफी कम कर दिया है और केवल अपवाद की स्थिति में आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय बनाया गया है।
    • किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' शुरू की थी।

आगे की राह

  • भारत में मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति सरकार द्वारा सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप और संसाधन आवंटन की मांग करती है।
  • मानसिक स्वास्थ्य के प्रति कलंक को कम करने के लिये हमें समुदाय/समाज को प्रशिक्षित और संवेदनशील बनाने के उपायों की आवश्यकता है।
  • जब मानसिक बीमारी वाले रोगियों को सही देखभाल प्रदान करने की बात आती है, तो हमें रोगियों के लिये मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, हमें सेवाओं और कर्मचारियों की पहुँच को बढ़ाने के लिये नए मॉडल की आवश्यकता है।
  • भारत को मानसिक स्वास्थ्य और इससे संबंधित मुद्दों के बारे में शिक्षित करने और जागरूकता पैदा करने के लिये निरंतर धन की आवश्यकता है।
  • स्वच्छ मानसिकता अभियान जैसे अभियानों के माध्यम से लोगों को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जानने के लिये प्रेरित करना समय की मांग है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स 2021

     Star marking (1-5) indicates the importance of topic for CSE
  • 09 Nov 2021
  •  
  • 4 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स,  ‘वॉर ऑन ड्रग्स’

मेन्स के लिये:

वैश्विक दवा संबंधी नीतियाँ एवं इनका कार्यान्वयन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘हार्म रिडक्शन कंसोर्टियम’ द्वारा ‘ग्लोबल ड्रग पॉलिसी इंडेक्स’ का उद्घाटन संस्करण जारी किया गया।

  • यह दवा नीतियों और उनके कार्यान्वयन का एक ‘डेटा-संचालित वैश्विक विश्लेषण’ है जो ऐसे समय में आया है जब भारत सरकार ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक पदार्थ अधिनियम, 1985 के प्रावधानों की समीक्षा कर रही है।
  • ‘हार्म रिडक्शन कंसोर्टियम’ नेटवर्क का एक वैश्विक कंसोर्टियम है जिसका लक्ष्य वैश्विक रूप से ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ को चुनौती देना, नुकसान कम करने वाली सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना और नुकसान में कमी के लिये संसाधनों को बढ़ाने की वकालत करना है।

Global-Drug-Policy-Index-2021

प्रमुख बिंदु

  • सूचकांक के बारे में: यह एक अनूठा उपकरण है जो राष्ट्रीय स्तर की दवा नीतियों का दस्तावेज़ीकरण, माप और तुलना करता है।
    • यह प्रत्येक देश को स्कोर और रैंकिंग प्रदान करता है जो दर्शाता है कि उनकी दवा नीतियाँ और कार्यान्वयन मानव अधिकारों, स्वास्थ्य और विकास के संयुक्त राष्ट्र सिद्धांतों के साथ कितना संरेखित है।
    • यह सूचकांक दवा नीति के क्षेत्र में एक आवश्यक जवाबदेही और मूल्यांकन तंत्र प्रदान करता है।
    • यह दुनिया के सभी क्षेत्रों को कवर करने वाले 30 देशों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करता है।

5 Dimensions

  • रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:
    • दमन और दंड आधारित दवा नीतियों के आधार पर वैश्विक नेतृत्व ने कुल मिलाकर बहुत कम (केवल 48/100) औसत स्कोर के साथ अंक प्राप्त किये हैं और केवल शीर्ष रैंकिंग वाला देश (नॉर्वे) 74/100 तक पहुँच गया है।
    • दवा नीति के कार्यान्वयन पर नागरिक समाज के विशेषज्ञों के मानक और अपेक्षाएँ हर देश में अलग-अलग होती हैं।
    • असमानता वैश्विक दवा नीतियों में गहराई तक व्याप्त है, शीर्ष क्रम के 5 देशों ने सबसे निचले क्रम के 5 देशों की तुलना में 3 गुना अधिक अंक प्राप्त किये हैं।
      • यह आंशिक रूप से ‘वॉर ऑन ड्रग्स’ दृष्टिकोण की औपनिवेशिक विरासत के कारण है।
    • नशीली दवाओं से संबंधित नीतियाँ सामाजिक-आर्थिक स्थिति में हाशिये पर पड़े लोगों को उनके लिंग, जातीयता, यौन अभिविन्यास के आधार पर असमान रूप से प्रभावित करती हैं।
    • राज्य की नीतियों और उन्हें ज़मीनी स्तर पर कैसे लागू किया जाता है, के बीच व्यापक असमानताएँ हैं।
    • कुछ अपवादों को छोड़कर औषधि नीति प्रक्रियाओं में नागरिक समाज और प्रभावित समुदायों की सार्थक भागीदारी अत्यंत सीमित है।
  • भारत का प्रदर्शन:
    • रैंकिंग:
      • 30 देशों में भारत का स्थान 18वाँ है। इसका कुल स्कोर 46/100 है।
    • स्कोर:
      • अत्यधिक सज़ा और प्रतिक्रियाओं के प्रावधान के आधार पर इसका स्कोर 63/100 है।
      • स्वास्थ्य और हानि में कमी के मामले में 49/100 है।
      • आपराधिक न्याय प्रतिक्रिया की आनुपातिकता में 38/100 है।
      • दर्द और पीड़ा से राहत के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नियंत्रित पदार्थों की उपलब्धता और पहुँच में 33/100 है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पाकिस्तान द्वारा वायु मार्ग की स्वतंत्रता का उल्लंघन

     Star marking (1-5) indicates the importance of topic for CSE
  • 09 Nov 2021
  •  
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-पाकिस्तान संबंध, शिकागो कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन

मेन्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन द्वारा प्रदत्त फ्रीडम ऑफ द एयर

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने बजट एयरलाइन गो फर्स्ट (जिसे पहले GoAir के नाम से जाना जाता था) द्वारा संचालित श्रीनगर और शारजाह (UAE) के बीच सीधी उड़ान सेवा शुरू की है। इस विमान को पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से गुज़रना था।

  • हालाँकि उड़ान को पाकिस्तान में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई और गंतव्य तक पहुँचने के लिये उड़ान को लंबा रास्ता तय करना पड़ा।
  • इससे पाकिस्तान द्वारा वायु मार्ग की प्राथमिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने की चिंता बढ़ गई है।

प्रमुख बिंदु

  • फ्रीडम ऑफ द एयर:
    • वायुमार्ग की स्वतंत्रता (The freedom of air) का अर्थ है कि कोई देश किसी विशेष देश की एयरलाइनों को दूसरे देश के हवाई क्षेत्र का उपयोग करने और/या वहाँ उतरने का विशेषाधिकार देता है।
    • वायु मार्ग शासन की स्वतंत्रता वर्ष 1944 के शिकागो कन्वेंशन से निर्गत है।
    • कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ताओं ने ऐसे नियम निर्धारित करने का निर्णय लिया जो अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विमानन के लिये मौलिक निर्माण प्रक्रिया (Building Blocks) के रूप में कार्य करेंगे।
    • यह कन्वेंशन नौ वायु मार्गों की स्वतंत्रता प्रदान करता है, लेकिन केवल पहली पाँच स्वतंत्रताओं/फ्रीडम को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है।
      • पहला अधिकार: यह अधिकार एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों को लैंडिंग किये बिना अपने क्षेत्र में उड़ान भरने के लिये दिया जाता है।
        • गो फर्स्ट (GoFirst) विमान (भारतीय वाहक) उड़ान के लिये पाकिस्तान (द्वितीयक देश) के हवाई क्षेत्र का उपयोग कर रही थी और इस विमान को संयुक्त अरब अमीरात (तीसरे देश) में उतरना था।
      • दूसरा अधिकार: गैर-यातायात उद्देश्यों के लिये एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र या राष्ट्रों को अपने क्षेत्र में उतरने के लिये अनुसूचित अंतर्राष्ट्रीय हवाई सेवाओं के संबंध में अधिकार या विशेषाधिकार प्राप्त है।
        • इसका आशय है कि नई दिल्ली से न्यूयॉर्क जाने वाली एयर इंडिया की एक फ्लाइट ब्रिटिश हवाई अड्डे पर उतर सकती है ताकि यात्रियों को सवार किये या उतारे बिना ईंधन भरा जा सके।
      • तीसरा अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में वाहक के गृह राष्ट्र से आने वाले यातायात को कम करना।
      • चौथा अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में मालवाहक के गृह राज्य हेतु नियत यातायात के तहत उड़ान भरना।
      • पाँचवाँ अधिकार: पहले राष्ट्र के क्षेत्र में तीसरे राष्ट्र से आने या जाने वाले यातायात को रोकना और उड़ान भरना।
  • भारत के विकल्प:
    • पाकिस्तान द्वारा हवाई क्षेत्र से उड़ान भरने से इनकार करना एक उल्लंघन है और शिकागो सम्मेलन द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ है।
      • इससे पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहाँ पाकिस्तान ने अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश से इनकार किया है।
    • भारत इस मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के समक्ष रख सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO):

  • यह संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की एक विशिष्ट एजेंसी है, जिसे वर्ष 1944 में स्थापित किया गया था, जिसने शांतिपूर्ण वैश्विक हवाई नेविगेशन के लिये मानकों और प्रक्रियाओं की नींव रखी।
    • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संबंधी अभिसमय/कन्वेंशन पर 7 दिसंबर, 1944 को शिकागो में हस्ताक्षर किये गए। इसलिये इसे शिकागो कन्वेंशन भी कहते हैं।
    • शिकागो कन्वेंशन ने वायु मार्ग के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय परिवहन की अनुमति देने वाले प्रमुख सिद्धांतों की स्थापना की और ICAO के निर्माण का भी नेतृत्व किया।
  • इसका एक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय हवाई परिवहन की योजना एवं विकास को बढ़ावा देना है ताकि दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन की सुरक्षित तथा व्यवस्थित वृद्धि सुनिश्चित हो सके।
    • भारत इसके 193 सदस्यों में से है।
  • इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अफगानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता: दिल्ली

  • 09 Nov 2021
  •  
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद,अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता

मेन्स के लिये:

अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की ज़रूरत तथा उद्देश्य, अफगानिस्तान में भारत के हित

चर्चा में क्यों?

आने वाले दिनों में भारत 'अफगानिस्तान पर दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता' की मेजबानी करेगा। 

  • बैठक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSAs) के स्तर पर होगी और इसकी अध्यक्षता भारत के एनएसए अजीत डोभाल करेंगे।

Afghanistan

प्रमुख बिंदु:

  • बैठक के बारे में:
    • आमंत्रित प्रतिभागी: भारत के शीर्ष सुरक्षा प्रतिष्ठान, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय ने व्यक्तिगत बैठक आयोजित करने का बीड़ा उठाया है। 
      • इसके लिये अफगानिस्तान के पड़ोसियों जैसे- पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान,उज़्बेकिस्तान, रूस और चीन सहित अन्य प्रमुख देशों को निमंत्रण भेजे गए थे।
    • बैठक की ज़रूरत: अमेरिकी सेना की वापसी और तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्ज़ा  करने के बाद भारत इस क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंतित है।
    • उद्देश्य: इस संदर्भ में भारत ने देश की वर्तमान स्थिति और भविष्य के दृष्टिकोण पर क्षेत्रीय हितधारकों एवं महत्त्वपूर्ण शक्तियों का एक सम्मेलन आयोजित करने के लिये यह पहल की है।
    • भारत का हित: यह बैठक अफगानिस्तान पर भविष्य की कार्रवाई तय करने के लिये भारत की कोशिश हो सकती है।
      • यह बैठक भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा के लिये दुनिया के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने की आवश्यकता को भी दर्शाती है।
    • प्रतिभागियों की प्रतिक्रिया: मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ रूस और ईरान ने भी भागीदारी की पुष्टि की है।
      • इस संबंध में उत्साहजनक प्रतिक्रिया अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्रीय प्रयासों में भारत की भूमिका से जुड़े महत्त्व की अभिव्यक्ति है।
    • पाकिस्तान और चीन का इनकार: पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने माना है कि वह बैठक में शामिल नहीं होंगे।
      • चीन ने भी समय की कमी के कारण क्षेत्रीय सुरक्षा बैठक में भाग नही लेने का फैसला किया है, लेकिन द्विपक्षीय चैनलों के माध्यम से भारत के साथ चर्चा जारी रखने के लिये तैयार है।
      • भारत का मानना है कि पाकिस्तान द्वारा इस बैठक में भाग लेने से इनकार करना अफगानिस्तान को अपने संरक्षित देश के रूप में देखने की पाकिस्तान की मानसिकता को दिखाता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय:

  • भारत ने 1999 में एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC) का गठन किया, जहाँ राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर इसके द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है।
    • एनएससी(NSC) प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वोच्च निकाय के रूप में कार्य करता है।
  • NSC में त्रि-स्तरीय संरचना शामिल है- रणनीतिक नीति समूह (SPG), राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय
  • गृह, रक्षा, विदेश और वित्त मंत्री इसके सदस्य हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार इसके सचिव के रूप में कार्य करते हैं।
  • अफगानिस्तान में भारत के हित: 
    • सामरिक लाभ: अफगानिस्तान में भारत की रणनीति एक ऐसी सरकार को बनने से रोकने की है जो पाकिस्तान को रणनीतिक लाभ और आतंकी समूहों के लिये एक सुरक्षित स्थान प्रदान करे।
    • सॉफ्ट पावर रणनीति: भारत ने अफगानिस्तान में 'सॉफ्ट पावर' रणनीति को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना है तथा रक्षा और सुरक्षा के बजाय नागरिक क्षेत्र में पर्याप्त योगदान देने को प्राथमिकता दी है।
    • विकासात्मक परियोजनाएँ: भारत निर्माण, बुनियादी ढाँचे, मानव पूंजी निर्माण और खनन क्षेत्रों में विशेष रूप से सक्रिय है।
      • इसके अलावा सहयोग के लिये दूरसंचार, स्वास्थ्य, फार्मास्यूटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी तथा शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी संलग्न है।
    • आर्थिक सहायता: दो द्विपक्षीय समझौतों के ढाँचे के भीतर भारत ने अफगानिस्तान को 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का वादा किया है। वर्ष 2017 के अंत तक निवेश पहले ही 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर को पार कर चुका है।
      • इस प्रकार भारत अफगानिस्तान की स्थिरता और आर्थिक तथा सामाजिक विकास में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है।
    • संपर्क परियोजनाएँ: भारत 600 किलोमीटर लंबे बामियान-हेरात रेल लिंक के निर्माण पर भी सहमत हो गया है जो हाजीगक खानों को हेरात से जोड़ेगा।
      • इसके अलावा भारत चाबहार के ईरानी बंदरगाह का विकास कर रहा है जो डेलाराम-ज़ारंज राजमार्ग के माध्यम से अफगानिस्तान से जुड़ेगा।
      • यदि अफगानिस्तान में शांति स्थापित हो जाती है, तो यह एशिया के मध्य में संपर्क गलियारे के रूप में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र बन सकता है।
  • अफगानिस्तान पर भारत का दृष्टिकोण:
    • भारत अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार से सीधे तौर पर निपटने के लिये तैयार नहीं है।
    • भारत ने दोहराया कि अफगानिस्तान को निम्नलिखित का ध्यान रखना चाहिये:
      • अपनी धरती को आतंक के लिये सुरक्षित पनाहगाह न बनने दें।
      • प्रशासन समावेशी होना चाहिये।
      • अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिये।
      • अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया का नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण अफगान लोगों द्वारा किया जाना चाहिये।

आगे की राह 

  • रूसी समर्थन: हाल के वर्षों में रूस ने तालिबान के साथ संबंध विकसित किये हैं। तालिबान के साथ किसी भी तरह के सीधे जुड़ाव में भारत को रूस के समर्थन की आवश्यकता होगी।
  • चीन के साथ संबंध: भारत को अफगानिस्तान में राजनीतिक समाधान और स्थायी स्थिरता प्राप्त करने के उद्देश्य से चीन के साथ बातचीत करनी चाहिये।
  • तालिबान से जुड़ना: तालिबान से बात करने से भारत निरंतर विकास सहायता या अन्य प्रतिज्ञाओं के बदले में विद्रोहियों से सुरक्षा गारंटी लेने के साथ-साथ पाकिस्तान से तालिबान की स्वायत्तता का पता लगाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

जमानत बॉक्स जारी करना

  • 09 Nov 2021
  •  
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 06/11/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘What we need to fix our judicial system’ लेख पर आधारित है। इसमें जमानत याचिका के कार्यान्वयन और आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी के उपयोग के संबंध में चर्चा की गई है।

हाल ही में शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद हुई आपराधिक कार्यवाही को लोगों ने दिलचस्पी से देखा। अंततः जब बॉम्बे हाई कोर्ट ने आर्यन को जमानत दे दी, तो लाखों भारतीयों को पता चला कि अदालत द्वारा जमानत दे देने से आरोपी को तत्काल रिहाई का अधिकार नहीं मिल गया, बल्कि उसे तब तक प्रतीक्षा करनी थी जब तक कि जमानत आदेश को आर्थर रोड जेल के बाहर भौतिक रूप से स्थापित एक लेटरबॉक्स में जमा नहीं कर दिया गया।

इस बॉक्स को दिन में चार बार खोला जाता है और चूँकि खान के वकील अंतिम डेडलाइन से चूक गए थे, शाहरुख के बेटे को जेल में एक अतिरिक्त रात बितानी पड़ी। लोग इस बात हैरान हैं कि एक "बेल बॉक्स" जेल और किसी भारतीय नागरिक की स्वतंत्रता के बीच इस प्रकार बाधा बन सकता है।

इस संदर्भ में नियमों एवं आपराधिक न्याय प्रणाली पर पुनर्विचार करने और न्यायपालिका प्रणाली में प्रौद्योगिकी को अपनाने की आवश्यकता है।

अब तक की गई पहल :

  • सर्वोच्च न्यायालय की ई-समिति के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में टिप्पणी की थी कि जमानत आदेशों को संप्रेषित करने में होने वाली देरी को शीघ्रातिशीघ्र संबोधित किया जाना चाहिये। 
  • इस संबंध में, हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने जमानत मिलने के बाद भी कैदियों की रिहाई न होने के विषय का स्वत: संज्ञान लिया था और फास्ट एंड सिक्योर्ड ट्रांसमिशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड (FASTER) सिस्टम के निर्माण का निर्देश दिया था, जो ड्यूटी धारकों तक अंतरिम आदेश, स्थगन आदेश, जमानत आदेश और कार्यवाही रिकॉर्ड की ई-सत्यापित प्रतियाँ प्रसारित करेगी।   
  • अदालत इस तथ्य पर पूर्णतः मौन रही कि वर्ष 2014 में प्रकाशित ई-कोर्ट परियोजना के लिये द्वितीय चरण के दस्तावेज़ ने आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रमुख संस्थानों के बीच सूचना के प्रसारण की अनुमति देने के लिये एक महत्त्वाकांक्षी (लेकिन अब तक अपूर्ण) योजना की घोषणा की थी।
  • ताज़ा मामले में "बेल-जेल" कनेक्टिविटी का विषय ई-समिति—जो ई-कोर्ट परियोजना संचालन के लिये उत्तरदायी है, की संरचना, प्रबंधन और उत्तरदायित्व में एक अधिक गहरी समस्या को इंगित करता है।

ई-कोर्ट परियोजना संबंधी मुद्दे:

  • परियोजना के प्रथम और द्वितीय चरण के लिये सरकार द्वारा क्रमशः 935 करोड़ रुपये तथा 1,670 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी गई थी एवं सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली ई-समिति को तय करना था कि इस राशि को कैसे खर्च किया जाये। परंतु फिर भी उपलब्धियों के मामले में अपेक्षाकृत कम प्रगति ही नज़र आती है।
  • कई न्यायालयों के पास कंप्यूटर सुविधा उपलब्ध है और इसके माध्यम से आम नागरिकों के लिये ‘केस इन्फॉर्मेशन’ प्राप्त करना आसान होता है, फिर भी ऐसे क्या कारण हैं कि अदालतों और जेलों के बीच आदेशों के इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण जैसे बुनियादी कार्यकरण का विषय ई-समिति के ध्यान में नहीं आया, जबकि इसका उल्लेख स्वयं उसके दृष्टिकोण पत्र में मौजूद था?
  • संभवतः इसलिये क्योंकि ई-समिति को किसी के प्रति जवाबदेह नहीं बनाया गया है। इसके द्वारा पर्याप्त मात्रा में सार्वजनिक धन का उपयोग किये जाने के बावजूद, न तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने और न ही लोकसभा की लोक लेखा समिति (PAC) ने ई-कोर्ट परियोजना के संचालन की समीक्षा की है।   
  • विधि और न्याय मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत न्याय विभाग (DoJ ) ने विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति के अतिरिक्त दबाव के बाद इस परियोजना के दो बेहद कमज़ोर मूल्यांकन प्रस्तुत किये।
  • इस तरह की जटिल परियोजना को कम से कम सार्वजनिक समीक्षा या निष्पादन लेखापरीक्षा के अधीन होना चाहिये। ये सार्वजनिक जवाबदेही और परियोजना प्रबंधन की बुनियादी बातें हैं।

न्यायपालिका में प्रौद्योगिकी के प्रयोग:

  • लागत में वृद्धि: ई-कोर्ट लागत-गहन भी साबित होंगे क्योंकि अत्याधुनिक ई-कोर्ट स्थापित करने के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकियों की तैनाती की आवश्यकता होगी। 
  • हैकिंग और साइबर सुरक्षा: प्रौद्योगिकी के उपयोग में साइबर सुरक्षा चिंता का एक प्रमुख विषय है। सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिये उपचारात्मक कदम उठाये हैं और साइबर सुरक्षा रणनीति तैयार की है, लेकिन यह अभी केवल निर्धारित दिशानिर्देशों तक सीमित है। इसका व्यावहारिक और वास्तविक कार्यान्वयन देखा जाना अभी शेष है। 
  • आधारभूत संरचना: अधिकांश तालुकाओं/ग्रामों में अपर्याप्त अवसंरचना और विद्युत् एवं इंटरनेट कनेक्टिविटी की अनुपलब्धता जैसे कारणों से इस उद्देश्य की पूर्ति के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
    • हर क्षेत्र, हर वर्ग तक समान रूप से न्याय की पहुँच के लिये इंटरनेट कनेक्टिविटी और कंप्यूटर के साथ विद्युत् कनेक्शन का होना आवश्यक है।
  • ई-कोर्ट रिकॉर्ड का रखरखाव: पैरा-लीगल कर्मियों के पास दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य के प्रभावी रखरखाव और उन्हें वादी तथा कौंसिल के साथ-साथ न्यायालय के लिये आसानी से उपलब्ध करा सकने के लिये पर्याप्त प्रशिक्षण एवं सुविधाओं का अभाव है। 
  • दस्तावेज़ या रिकॉर्ड साक्ष्य तक आसान पहुँच का अभाव अन्य विषयों के साथ ही न्यायिक प्रक्रिया के प्रति वादी के भरोसे को कम कर सकता है।

आगे की राह:

  • असमान डिजिटल पहुँच की समस्या को संबोधित करना: जबकि देश में मोबाइल फोन का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है, इंटरनेट तक पहुँच शहरी उपयोगकर्त्ताओं तक ही सीमित रही है। 
  • अवसंरचना की कमी: न्याय के वितरण में ‘ओपेन कोर्ट’ एक प्रमुख सिद्धांत या शर्त है। सार्वजनिक पहुँच के प्रश्न को दरकिनार नहीं किया जा सकता, बल्कि यह केंद्रीय विचार का विषय होना चाहिये।
    • प्रौद्योगिकीय अवसंरचना की कमी का प्रायः यह अर्थ होता है कि ऑनलाइन सुनवाई तक पहुँच कम हो जाती है।
  • रिक्तियों को भरना: जिस तरह डॉक्टरों को किसी भी स्तर के उन्नत चैटबॉट्स या प्रौद्योगिकी द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता, वैसे ही न्यायाधीशों का कोई विकल्प नहीं है और उनकी भारी कमी बनी हुई है। 
    • इंडिया जस्टिस रिपोर्ट 2020 के अनुसार, उच्च न्यायालय में 38% (2018-19) और इसी अवधि में निचली अदालतों में 22% रिक्तियाँ थीं।
    • अगस्त 2021 तक की वस्तुस्थिति के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रत्येक 10 में से चार से अधिक पद रिक्त बने हुए हैं।
  • न्यायाधीशों की जवाबदेही: समाधान न्यायाधीशों से उत्तरदायित्व की माँग में निहित है जो प्रशासनिक रूप से जटिल परियोजनाओं (जैसे ई-कोर्ट) का संचालन स्वयं करने पर बल तो देते हैं, लेकिन इसके लिये वे प्रशिक्षित नहीं हैं और उनके पास आवश्यक कौशल की कमी होती है। 
  • एक अन्य पहलू जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है वह है एक सुदृढ़ सुरक्षा प्रणाली की तैनाती जो उपयुक्त पक्षों के लिये केस इन्फोर्मेशन तक सुरक्षित पहुँच प्रदान करे। ई-कोर्ट अवसंरचना और प्रणाली की सुरक्षा सर्वोपरि है।  
  • इसके अलावा उपयोगकर्त्ता-अनुकूल ई-कोर्ट तंत्र का विकास किया जाना चाहिये जो आम जनता के लिये सरलता और आसानी से अभिगम्य हो। यह वादियों को भारत में ऐसी सुविधाओं का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करेगा। 

निष्कर्ष

यह उपयुक्त समय है कि दीर्घकालिक और स्थायी परिवर्तन लाया जाए जो भारत की चरमराती न्याय वितरण प्रणाली को रूपांतरित करे।

लेकिन प्रौद्योगिकी पर आवश्यकता से अधिक निर्भरता न्यायालयों की सभी समस्याओं के लिये एकमात्र रामबाण उपचार नहीं हो सकती और अगर अधिक विचार-विमर्श के बिना इस ओर कदम बढ़ाया गया तो यह प्रतिकूल परिणाम भी उत्पन्न कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: आपराधिक न्याय प्रणाली को कुशल और प्रभावी बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करने की आवश्यकता है। इस कथन का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।


Current Affairs Gen.

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